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सत्ता को ना उठे गांडीव, द्रोपदी की बच जाए लाज

By Edited By: Published: Mon, 12 Aug 2013 10:41 PM (IST)Updated: Tue, 13 Aug 2013 01:32 AM (IST)
सत्ता को ना उठे गांडीव, द्रोपदी की बच जाए लाज

जागरण टीम, बांका : सत्ता की लड़ाई में बौनी पड़ती जा रही राष्ट्रहित व जनहित की बातें गिनती भर बचे स्वतंत्रता सेनानियों को भी व्यथित कर रखा है। सियासत के बदरंग खेल, भ्रष्टाचार का बढ़ता फन व जन भावनाओं की अनदेखी से उनका बूढ़ा तन तप रहा है। उन्हें लगता है कि आज नेता हो या अधिकारी किसी को अपने क‌र्त्तव्य की तनिक भी भान नहीं है। अपने दायित्व से सभी ने मुंह मोड़ लिया है। उन्हें लग रहा है कि हमारे अर्जुन और भीम जैसे महारथी दुश्मनों के बोल बोल रहे हैं। शहीदों का अपमान हो रहा है।

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सोमवार को दैनिक जागरण से बातचीत में स्वतंत्रता सेनानियों की यह व्यथा छलक पड़ी। जागरण टीम के सदस्यों ने जिला भर में दर्जन भर स्वतंत्रता सेनानी से देश के वर्तमान हालत पर बातचीत की।

अमरपुर कजरा के रामचंद्र सिंह देश के वर्तमान हालत पर राजनेताओं की रवैये पर काफी आहत दिखे। 95 वर्षीय सिंह सन 42, आंदोलन में अमरपुर थाना जलाने में शामिल थे। हालात पर सवाल पूछते ही वे राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्ति- रे रोक युधिष्ठिर को न यहां, जाने दो उन्हें स्वर्गधीर, पर फिरा हमें गांडिव-गदा, लौटा दे अर्जुन-भीम वीर.. से तस्वीर साफ कर देते हैं। उन्होंने कहा कि देश में महाभारत काल से ही सत्ता की राजनीति हो रही है। द्रोपदी चीर हरण के वक्त राज के धनुर्धर चुप रहे। अब भी भारत माता का चीर हरण हो रहा है। लेकिन, हमारे धनुर्धर चुप्पी साधे हैं। दुख तब होता है जब हमारे धनुर्धर ही कभी दुश्मन की बोली बोलने लगते हैं और शहीदों का अपमान करते हैं। वे अपना गांडिव सत्ता के लिए प्रयोग करते हैं, द्रोपदी का चीरहरण रोकने के लिए नहीं। भाषा व क्षेत्रीयता के नाम पर देश बंट रहा है। संसद मौन बैठी है। इसी गांव के स्वतंत्रता सेनानी जगदीश सिंह पक्षाघात के कारण जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे, पर देश और आजादी जैसे शब्द सुन कर जज्बाती हो जा रहे थे।

धोरैया प्रखंड अंतर्गत भेलाय में प्रखंड के एकमात्र जीवित बचे स्वतंत्रता सेनानी बृजमोहन राउत अंग्रेजों से लोहा लेने के बाद आज पक्षाघात से लड़ रहे हैं। श्रीराउत महेंद्र गोप के साथ लड़ाई में थे। गांव में कुछ साथियों के साथ जमींदार की कचहरी जलाने पर अंग्रेज इनसे भय खाते थे। जिसके बाद वे जंगल व पहाड़ों में रह कर लड़ाई को आगे बढ़ा रहे थे। बाद में बहुत दिन ये सेंट्रल जेल भागलपुर में रहे। इन्हें सरकार द्वारा ताम्र पत्र से भी सम्मानित किया गया है। श्री राउत कहते हैं कि आजादी के बाद उनलोगों ने काफी सपना देखा था। लेकिन, जिंदगी के अंतिम पड़ाव तक पूरा होते नहीं दिखा। उनकी मानें तो भ्रष्टाचार हमारे देश को दीमक की तरह चाट रहा है। हमारी नियत सही नहीं रही। जिन्हें मौका मिल रहा, वे ही देश को लूटने में लग जाते हैं। देश और राष्ट्र की समझ कमजोर पड़ गई है। हमें समझना होगा कि इस देश की आजादी के लिए कितने लोगों ने जान दे दी। आप स्वतंत्रता के बाद भी इस देश को मजबूत नहीं होने देना चाहते। खास कर राष्ट्रीय स्तर पर बड़े नेताओं के लूट में शामिल होने से वे ज्यादा आहत हैं।

रजौन धरमायचक के स्वतंत्रता सेनानी गणेश प्रसाद सिंह में आंदोलन की बात याद कर भावुक हो जाते हैं। श्री सिंह लक्ष्मण सेन दल के साथ लड़ाई में शामिल थे। मुख्य सड़क पर कतरिया पुल उड़ाने, रजौन डाकघर जलाने तथा नवादा कलाली जलाने में वे शामिल रहे हैं।

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