जब ब्राह्माण से हारे देवता तो बना देवहरा
औरंगाबाद । दाउदनगर-गोह पथ में है देवहरा। पवित्र मानी गयी नदी पुनपुन के किनारे एक शिव मंदि
औरंगाबाद । दाउदनगर-गोह पथ में है देवहरा। पवित्र मानी गयी नदी पुनपुन के किनारे एक शिव मंदिर और धर्मशाला बना हुआ है। यह स्थान मनोरम दिखता है। जब आप इस रास्ते यात्रा करते हैं तो मन में यह सवाल उठता है कि मंदिर कब किसने बनवाया? धर्मशाला किसने बनाया? पहले जान लें कि इस स्थल का नाम देवहरा क्यों पड़ा? शब्द से ही अनुमान होता है कि यहा कभी देवता हारे होंगे। पं.लालमोहन शास्त्री ने बताया कि जहा ब्राह्माण से देवता हार मान गए उसे देवहरा कहा जाता है। भवसागर से पार करने वाले यजुर्वेदीय नाव से नदी पार लगाने वाले मल्लाहों की संख्या इसी कारण यहा है। नदी के पश्चिमी तट पर बना मंदिर और धर्मशाला का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने कराया था। धर्मशाला का अवशेष बचा हुआ है किंतु मंदिर और घाट सुरक्षित है। यहा यह बता दें कि सिहाड़ी में हेमनाथ मंदिर का निर्माण भी होल्कर ने ही कराया था। बताया जाता है कि ऋषि काल में यहा देवल ऋषि तपस्या किया करते थे। अंग्रेजी हुकूमत के काल में यहा विद्वान ब्राह्माणों का निवास रहा है। कहा जाता है कि एक अघोरी साधक यहा आकर अपना तात्रिक चमत्कार दिखाते हुए कमंडल (तुंबा) को आकाश में उलटा लटका दिया। इसके विरोध स्वरुप स्थानीय एक ब्राह्माण ने अपने कर्मपात्र (लोटा) को उलटा कर ध्वनि करने लगे और वह लोटा आकाश में लटक गया। इससे तात्रिक ने अपमानित समझते हुए खुद को पराजित माना और उसे श्राप दिया कि तुम्हारे कुल में अब कोई विद्वान जन्म नहीं लेगा। जहा दोनों ने चमत्कार दिखाया था उसे झारखंडी स्थान कहा जाता है। गया जाकर पिंडदान करने वाले इस रास्ते यात्रा में पहले पुनपुन में पिंडदान करते हैं। उत्तर पथ गामिनी पुनपुन में तर्पण का विशेष महत्व है। पुराणों में देवकुंड, देव और देवहरा का विशेष वर्णन है। यहा छठ व्रत पर सूर्य को अर्घ्य देने का अपना महत्व है।