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राष्ट्रीय विरासत सरीखे देवालय पर ध्यान जरूरी

गया जिले के 24 प्रखंड में एक कोंच है। यहीं कोंचडीह में विराजमान कोंचेश्वर महादेव गुप्तोत्तरकालीन नाग

By Edited By: Published: Wed, 22 Oct 2014 07:43 PM (IST)Updated: Wed, 22 Oct 2014 07:43 PM (IST)
राष्ट्रीय विरासत सरीखे देवालय पर ध्यान जरूरी

गया जिले के 24 प्रखंड में एक कोंच है। यहीं कोंचडीह में विराजमान कोंचेश्वर महादेव गुप्तोत्तरकालीन नागर शैली के उत्कृष्ट भारतीय देवालयों में पांक्तेय है जिसका निर्माण ईटों से किया गया है। पंचानपुर मोड़ से मुड़ते ही एक तरफ टिकारी और दूसरी तरफ परैया के बीच सड़क पर चलते खेतों के बीच छोटे-बड़े जलकुंड के मध्य और बड़े आहर के किनारे रंग बिरंगे पक्षियों के कलरव उन ऐतिहासिक वृतांत के मूक गवाह जान पड़ते हैं जिनके बारे में तथ्य है कि प्राच्य काल में कोंच पक्षी की बहुलता से क्षेत्र विशेष कोंच कहलाया। जिसके प्रधान देवता कोचेश्वर के नाम से ख्यात हुए। कोंच प्रदेश करते ऊंचाई भरा रास्ता और कोंच स्टैंड मोड़ के आगे जाने के मार्ग में महावीर स्थान टिकारी मोड की ऊंचाई उन पुरातनयुगीन आबादी का स्पष्ट संकेत है जिसके अवसान के कोई चार सौ वर्ष हो गए।

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बिना सूचना पट्टिका, बगैर वर्णन-विवरण उल्लेख के मार्ग पर मुड़ते-मुड़ते आ जाइए कोंचेश्वर मंदिर। एक गुजरे जमाने का सच एकदम आंखों के सामने। मंदिर की वाह्य व आंतरिक कलाकारिता के रूप रंग और बनते बिगड़ते समय के बीच अपनी उपस्थिति का अहसास कराता यह देवालय आदि शंकराचार्य के चरणरज से पवित्र है। भले ही आज शिखर भाग के चारों भाग पर उगते हुए जंगली झाड़, पेड़ और तिरछा त्रिशूल देखकर मन दुखी हो जाता है। प्रदेश करते ही अलंकृत बीस के करीब पाषाण स्तंभ और बगल के पलते उजड़ते बाग के किनारे करीने से रखे गए चास के करीब थोड़े बहुत मग्न मूर्तशिल्प की अवस्था बीमार जान पड़ती है।

21 मीटर ऊंचा और वर्ष 1996 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पटना अंचल के अधीन सुरक्षित स्मारक आज मौसम की मार से असुरक्षित हो चला है। यहीं के लगनशील सांस्कृतिक प्रतिनिधि रामाधार शर्मा बताते हैं कि गत वर्ष बरसात में ठनका गिरने के अंश से थोड़ी शिखर भाग की मरम्मत तो हुई पर रंगरोगन आज तक नहीं हो सका है। सचमुच बिना रंगरोगन के मंदिर रंगहीन होता जा रहा है। अतीत की भीनी खुशबू से सराबोर कोंच का स्टैंड तालाब, महादेव मंदिर, विष्णु मंदिर व देवी स्थान सब के सब पुरातन वैभव को समेटे हैं पर प्रचार-प्रसार व उचित रखरखाव के बगैर यह पूरा का पूरा विरासत बेरौनक होते जा रहा है।


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