मशरूम की खेती से श्रमिकों के पलायन पर लगेगा अंकुश
अररिया[रूपेश कुमार]। बेटा बड़े पद पर है तो इससे क्या हुआ, अपनी माटी का कर्ज तो हर शख्स क
अररिया[रूपेश कुमार]। बेटा बड़े पद पर है तो इससे क्या हुआ, अपनी माटी का कर्ज तो हर शख्स को उतारना ही चाहिए। यह कहना है •ामाने से बेखबर और अपनी ही धुन के पक्के एक किसान रमेंद्र नारायण पांडे का। वे ढोलबज्जा फारबिसगंज रहने वाले हैं तथा उनका बेटा मुंबई में कस्टम के ज्वाइंट कमिश्नर पद पर कार्यरत है।
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परंपरागत खेती के नहीं हैं पक्षधर
वे पंजाब की तर्ज पर गैर पारंपरिक खेती के प्रबल पक्षधर है तथा इन दिनों मशरूम की खेती कर गांव के किसानों को जागरूक कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि उनके लिए खेती का मकसद रबी फसलों से अलग हटकर कुछ खास करने की है। इसीलिए उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की। इससे उन्हें पैसे तो मिल ही रहे हैं, दिल्ली-पंजाब पलायन करने वाले मजदूरों को अपने घर में ही काम देने व उन्हें जागरूक करने में भी सफलता मिल रही है।
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पंजाब से मंगाया बीज
श्री पांडे के सहयोगी रमेश ¨सह ने बताया कि मशरूम की खेती के लिए उचित तापमान चाहिए। फसल तैयार होने में करीब सवा महीने का वक्त लगता है। इस इलाके के लिए यह बिल्कुल नई खेती है जिस कारण परेशानी भी हो रही है। सबसे बड़ी दिक्कत बाजार की है। वैसे फसल का बाजार भाव काफी अच्छा है और यह 200 रुपये किलो तक बिक जाता है। लेकिन फसल के बर्बाद होने का खतरा भी है। वहीं, श्री पांडे ने बताया कि 40 दिन के अंदर अगर बाजार में मशरूम की डिमांड नहीं हुई तो इसके नष्ट होने की समस्या सबसे बड़ी बाधा है जिससे किसानों को आर्थिक क्षति हो सकती है।
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पलायन रोकना है तो कुछ नया करना होगा: रमेन्द्र
रमेन्द्र नारायण पांडेय ने बताया कि उनका लड़का पवन कुमार आइपीएस शिवदीप लांडे, मनु महराज, निशांत तिवारी के बैच का है और इन दिनों पुणे में है। वह कस्टम विभाग का ज्वाइंट कमिश्नर है। यह उसी का संकल्प है। उसका मानना है कि पलायन रोकना है तो कुछ नया करना होगा। इसीलिए उन्होंने अपने गांव में ही मशरूम की खेती शुरू की है।
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