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बिहार में बसता है एक एेसा गांव, जहां घर-घर मेें हैं दिव्यांग, जानिए

बिहार के अररिया जिले का एक गांव एेसा है, जहां घर-घर में दिव्यांग रहते हैं। इस गांव में समुचित चिकित्सा सुविधा का अभाव है और गरीबी की वजह से लोग अपना इलाज भी नहीं करा पाते।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 11 Mar 2017 08:11 AM (IST)Updated: Sat, 11 Mar 2017 10:16 PM (IST)
बिहार में बसता है एक एेसा गांव, जहां घर-घर मेें हैं दिव्यांग, जानिए
बिहार में बसता है एक एेसा गांव, जहां घर-घर मेें हैं दिव्यांग, जानिए
अररिया [आशुतोष कुमार निराला]। बिहार में एक गांव ऐसा भी है, जहां हर घर में दिव्यांग रहते हैं। यहां लोग अंधापन, गूंगापन, बहरापन के अलावा हाथ-पैरों से दिव्यांग हैं। मानसिक दिव्यांग भी हैं। जो ठीक हैं, वे भी उम्र बढऩे के साथ दिव्यांग हो जाते हैं।
यह गांव है अररिया जिला के जोकीहाट प्रखंड का भंसिया गांव। गांव के केवाला टोला स्थित वार्ड संख्या चार और पांच के हर घर में कम से कम दो दिव्यांग जरूर हैं। 
बीमारी के कारण व नाम का पता नहीं 
गांव की आबादी करीब 1500 है। अधिकांश लोग गरीब हैं। इलाके में समुचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं और लोग बाहर जाकर इलाज कराने की औकात नहीं रखते। आश्चर्य की बात जो यह है कि गांव के लोगों को अपनी बीमारी के नाम व कारणों का पता नहीं। जिला के सिविल सर्जन डॉ. एनके ओझा तक यहां की समस्या से अनजान हैं। कहते हैं गांव में चिकित्सकों की टीम भेजकर वस्तुस्थिति का पता लगाया जाएगा, फिर समुचित कार्रवाई की जाएगी। 
उपजाऊ है यहां की जमीन 
गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि कभी राजा की रसोई के लिए यहां से अनाज जाता था, इसलिए गांव का नाम भंसिया पड़ा। गांव की जमीन काफी उपजाऊ है, लेकिन लगता है यहां के लोग दिव्यांगता को झेलने के लिए अभिशप्त  हैं। अशफाक ने बताया कि गांव में कभी कोई चिकित्सक नहीं आया। किसी ने दिव्यांगता के कारणों को जानने का प्रयास भी नहीं किया। 
सामाजिक सुरक्षा पेंशन से वंचित सैकड़ों लोग 
दिव्यांग कुर्बान राय व विनोद ने बताया कि गांव के लगभग 500 लोगों को सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत पेंशन मिलती है। इसपर भी बिचौलियों का साया है। सैकड़ों लोग अभी भी पेंशन से वंचित हैं। एक पैर से दिव्यांग बुधनी ने बताया कि उसका जवान भाई दोनों पैरों से दिव्यांग है। 
बचपन में चलता था फैजल
बुधनी का भाई फैजल काफी खूबसूरत है। बचपन में वह चलता था, लेकिन उम्र बढऩे के साथ वह दोनों पैरों से लाचार हो गया। फैजल ने बताया कि उसे बाहर जाने का बहुत मन करता है, लेकिन उसके पास दिव्यांगों के इस्तेमाल की ट्राइसाइकिल नहीं है। गरीबी के कारण वह इसे खरीदने में लाचार है। 
सरकारी अस्पताल बदहाल
पंचायत का अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र बदहाल है। अस्पताल के करीब रहने वाले मो. तंजीर आलम ने बताया कि दिव्यांगों के इस्तेमाल के लिए यहां कई उपकरण आए थे, लेकिन सब यूं ही पड़े हैं। 

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