यहां कायम है कौमी एकता, ताजिया मुसलमानों का लाइसेंस हिंदू के नाम
बिहार के अररिया जिले के मानिकपुर गांव में ताजिया तो मुसलमान निकालते हैं, पर इसका लाइसेंस हिंदू के नाम से जारी होता है।
अररिया [जुबैर अंसारी]। सांप्रदायिक भावना भड़काकर समाज को तोडऩे वालों के लिए यह सीख है। मानिकपुर गांव में ताजिया तो मुसलमान निकालते हैं, पर इसका लाइसेंस हिंदू के नाम से जारी होता है। पिछले सौ से अधिक सालों से गांव में यह परंपरा कायम है।
वर्तमान में ताजिया का लाइसेंस शनिचर शर्मा के नाम से जारी होता है। दोनों ही समुदाय के लोग मिलकर ताजिया जुलूस निकालते हैं। इतना ही नहीं बैरगाछी के मैदान-ए-करबला में भी सबसे पहले यहीं के ताजिये को जगह मिलती है। भाईचारे की इस तहजीब ने तो अब गांव को ताजिया चौक का नाम दे दिया है।
ब्रिटिश शासन से चली आ रही परंपरा
शनिचर शर्मा ने बताया कि उनके पूर्वजों ने ही मुहर्रम का लाईसेंस लेने की शुरूआत की थी। ब्रिटिश जमाने में सबसे पहले चुन्नी लाल शर्मा के नाम से लाइसेंस बना था। उनके बाद रामलाल सुतिहार और उनके बाद कारे लाल शर्मा के नाम से लाइसेंस बनता रहा। वर्तमान में कारेलाल शर्मा के परपोते यानी शनिचर शर्मा के नाम से लाइसेंस बन रहा है।
भाईचारे की मिसाल है ताजिया चौक
मानिकपुर के ताजिया चौक पर अररिया बस्ती व बसंतपुर पंचायत के ङ्क्षहदू-मुसलमान साथ मिल कर मोहर्रम के मातम साझा करते हैं। दोनों गांव के लोग मिलजुलकर पैसा, बांस, चावल व गेहूं जमा करते हैं। साथ मिलकर ताजिया बनाया जाता है। मुहर्रम कमेटी के अध्यक्ष मुखिया वसीकुररहमान व सचिव रकीमुददीन ने बताया कि उनका ताजिया चौक पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है।