इस गांव में लड़की का मतलब था केवल ‘सेक्स’, अब आया ये बदलाव...
बिहार के अररिया में एक गांव है कासिमनगर। यहां करीब सौ साल से चल रहे संगठित सेक्स रैकेट को एक महिला ने अपने बल पर ध्वस्त किया है। वह भी सामाजिक बदलाव के माध्यम से।
By Amit AlokEdited By: Published: Tue, 27 Sep 2016 11:12 AM (IST)Updated: Tue, 27 Sep 2016 06:05 PM (IST)
पटना [अमित आलोक]। बिहार के अररिया के एक गांव में लड़की होने का मतलब था केवल सेक्स। बेटी के जन्म के साथ ही उसकी भविष्य के लिए बोली लगने लगती थी। होश संभालने के साथ ही देह व्यापार के दलदल में फंसना तय था। लेकिन, सौ साल से कायम इस अंधेरे में एक महिला उजाले की किरण बनकर आई। अब यहां देह व्याापर नहीं, शिक्षा व स्वावलंबन की बात होती है।
कहते हैं कि अगर मन में जज्बा हो तो मुश्किलें बाधा नहीं बनतीं। अररिया के हासा पंचायत के कासिमनगर टोला में रहने वाली नुरेशा ने इसे चरितार्थ कर दिखाया है। उनके अथक प्रयास से इस रेड लाइट एरिया में न सिर्फ देह व्यापार का धंधा बंद हो गया, बल्कि इस दलदल से निकलकर यहां की लड़कियां पढ़-लिखकर रोजगार कर रही हैं।
नुरेशा यहां की आधा दर्जन से अधिक लड़कियों को देह व्यापार के दलदल से निकालकर उनकी शादी भी करा चुकी हैं। कइयों का अब अपना परिवार है।
कासिम नगर को कभी रेड लाइट एरिया के नाम से जाना जाता था। यहां अंग्रेजों के जमाने से ही देह व्यापार का धंधा चल रहा था। यहां नट जाति के लोग रहते हैं। रोजगार का कोई साधन नहीं रहने के कारण पेट की आग बुझाने के लिए यहां यह धंधा फल-फूल रहा था। यहां बंगाल, नेपाल आदि की लड़कियां भी आकर धंधा करती थीं। बड़े-बड़े सफेदपोश व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का जमावड़ा लगा रहता था।
यहां बेटी को कमाई का साधन माना जाता था। होश संभालते ही बच्चियों को देह व्यापार के दलदल में धकेल दिया जाता था। लेकिन, अब करीब 10-15 साल से यह पूरी तरह बंद है।
नट जाति में जन्मीं नुरेशा ने होश संभालते ही इसका विरोध शुरू कर दिया। करीब 60 साल की नुरेशा कहती हैं, ‘जब होश संभाला, गांव में बुराइयां ही बुराइयां देखीं। बेटियों को कमाई का साधन माना जाता था’।
नुरेशा के इस काम में बुद्धिजीवियों का साथ तो मिला, लेकिन उनकी राह आसान नहीं रही। सेक्स रैकेट संचालकों ने उन्हें हर तरह से तबाह किया। वे बताती हैं, उनको कई झूठे मुकदमों में फंसाया गया, आर्थिक व मानसिक प्रताडऩा भी झेलनी पड़ी। इसके बावजूद उन्होंंने हार नहीं मानी। समाज के अच्छे लोगों का साथ भी मिला। धीर-धीरे परिस्थितियां अनुकूल बनती गईं। अंत में उनकी जीत हुई।
नुरेशा बताती हैं, ‘जो इस धंधे को नहीं छोडऩा चाहते थे, वे दूसरे शहर चले गए। शेष लड़कियों का उनकी पसंद के लड़कों से विवाह करा दिया। देह व्यापार का धंधा बंद कराने में पंचायत के दूसरे गांव के लोगों का भी काफी सहयोग मिला’।
पंचायत के पूर्व मुखिया विनोद कुमार कहते हैं कि यहां देह व्यापार पूरी तरह बंद है। करीब सौ साल बाद यह बदलाव आया है। यहां के लोगों को मुख्य धारा से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। लोगों को सरकार की कल्यारणकारी योजनाओं का लाभ मिले, इसकी कोशिश की जा रही है।
नुरेश भी कहती हैं कि एक बुराई को समाप्त करा देने का मतलब यह नहीं कि वह फिर से नहीं पनपेगी। इस आशंका को दूर करने के लिए जरूरी है कि यहां के लोगों के लिए रोजगार व रोटी की व्यवस्था की जाए। सरकारी स्तर पर पहल की आवश्यकता है। सिलाई-कढ़ाई के प्रशिक्षण व सरकारी मदद से महिलाओं व पुरुषों को स्वावलंबी बनाया जा सकता है।
फिलहाल, यहां एक मदरसा खोलकर बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा का इंतजाम किया गया है। बच्चियां भी पढ़ने जा रही हैं। यह मदरसा गांववालों के चंदे पर चलता है। बेटियों की यह नई पौध यहां नया बदलाव लेकर आएगी, यह तय है।
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