सड़ रही योजनाएं, मस्ती में बिचौलिए
अररिया, जागरण संवाददाता: सरकार की अधिकांश योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पाती है कि योजनाओं की राशि का ब
अररिया, जागरण संवाददाता: सरकार की अधिकांश योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पाती है कि योजनाओं की राशि का बड़ा हिस्सा बिचौलियों की जेब में चला जाता है। वहीं, सरकारी कमीशनखोरी भी बदस्तूर कायम है। अच्छे अधिकारी आते हैं तो यह घट जाती है अन्यथा योजनाओं की लाश पर कमीशनखोर 'गिद्धों का भोज' चलता रहता है।
बिचौलियों को मिल चुकी है सामाजिक मान्यता
बिचौलिए इतने ताकतवर हैं कि इनके बिना सरकारी योजनाओं की गाड़ी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ती। ये आम जन के बीच रहते हैं तथा सरकारी दफ्तरों से योजनाओं की जानकारी लेकर उनकी एवज में अवैध उगाही करते हैं और अपनी एवं भ्रष्ट बाबू-अधिकारी की झोली भरते हैं।
बिचौलियागिरी पनपने की प्रमुख वजह
-भ्रष्ट अधिकारियों की नेटवर्किंग
-सरकारी दफ्तरों में बाबुओं की कमी
-योजनाओं के क्रियान्वयन से पहले प्रापर प्लानिंग का अभाव
-आम जन के बीच व्याप्त निरक्षरता
-राजनीतिक ताकतों का संरक्षण
-नाजायज पैसा कमाने के प्रति लोगों की बढ़ती हवस
-प्रशासन की उदासीनता
बढ़ रहा भ्रष्टाचार, घट रही योजनाओं की गुणवत्ता
बिचौलियागिरी से न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है बल्कि योजनाओं की गुणवत्ता भी घट रही है। इंदिरा आवास जैसी जन कल्याणकारी योजनाओं के कोई निशान ढूंढने से भी नहीं मिलते। जबकि सरकारी भवन बनने के साथ ही क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। नब्बे के दशक में बने एक हजार से अधिक काउजवे आज लापता हैं। वहीं लंबित पड़ी योजनाओं की संख्या हजारों में है।
लंबित व बिचौलिया पीड़ित योजनाएं
मनरेगा- 16 हजार लंबित योजनाएं
बीआरजीएफ-1869
इंदिरा आवास-50 हजार
स्कूल भवन-526
मिशनमोड से संवर सकती है तस्वीर
योजनाओं के क्रियान्वयन में मिशन मोड अपनाने से ही तस्वीर संवर सकती है। अधिकतर सरकारी कार्यालयों में कार्यरत बाबू कार्य निष्पादन के लिए बिचौलियों व नाजायज बाहरी लोगों पर निर्भर हैं। इन बाहरी लोगों को सरकार वेतन तो देती नहीं, लिहाजा ये कमीशन व बिचौलियागिरी का सहारा लेने में गुरेज नहीं करते।