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अररिया में बना रोगों का स्थाई बसेरा

अररिया, जासं: भूख, कुपोषण व गरीबी की मार से जूझ रहे अररिया में रोगों का स्थाई बसेरा बन गया है। अगर क

By Edited By: Published: Tue, 21 Apr 2015 01:45 AM (IST)Updated: Tue, 21 Apr 2015 01:45 AM (IST)
अररिया में बना रोगों का स्थाई बसेरा

अररिया, जासं: भूख, कुपोषण व गरीबी की मार से जूझ रहे अररिया में रोगों का स्थाई बसेरा बन गया है। अगर कोई दस दिनों तक यहां के किसी गांव का पानी सेवन करता है तो संभव है कि उसका पेट फूल जाए, दांत का रंग मटमैला व पीला हो जाए और शरीर दुबला हो जाए। कारण है कि यहां पर कई तरह की बीमारियों का असर दिखाई देने लगा है। पेट दर्द, सिर दर्द, सर्दी खांसी, इंफ्लुएंजा, निमोनिया, कुष्ठ, जौंडिस, डायरिया.., मर्ज व मरीजों की लिस्ट खासी लंबी है। स्वास्थ्य विभाग इनसे लड़ने के प्रयास भी कर रहा है। लेकिन मर्ज की गाड़ी का शायद ब्रेक ही फेल हो गया है क्योंकि संसाधनविहीन विभाग उनसे लड़ने में कहीं न कहीं पिछड़ जरूर रहा है। मर्ज व उससे पीड़ित मरीजों की संख्या के विश्लेषण से कई निष्कर्ष सामने आते हैं।

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-अररिया में मर्ज के प्रसार पर कोई नियंत्रण नहीं है।

-सरकारी कोशिशें आधी अधूरी व आधे मन से चल रही हैं।

-यहां रोग के फैलाव की मेन वजह जल एवं वायु प्रदूषण है।

-जल प्रदूषण से पीलिया, हेपेटाइटिस, चर्मरोग, डायरिया, आंत्र शोथ, डिसेंट्री, ऐंट्रिक फीवर, टायफाइड व मलेरिया आदि बीमारियां सामने आ रही

रोग नियंत्रण में क्या है दिक्कतें

अररिया जिले में रोग के फैलाव व मरीजों के ट्रीटमेंट में सबसे बड़ी दिक्कत इन्फ्रास्ट्रक्चर व मानव संसाधन की कमी है। सरकार मशीनें भेज देती हैं, लेकिन उन्हें चलाने वाला कोई नहीं होता। अररिया के सदर अस्पताल में लाखों रुपये कीमत की ढेर सारी मशीनें केवल चलाने वाले की कमी के कारण बर्बाद हो गयी। दरअसल अस्पतालों में दवा आपूर्ति की शुरूआत हुई। मगर भंडारण की व्यवस्था नहीं होने के कारण बड़ी मात्रा में दवाएं बेकार हो जाती हैं अथवा उनकी गुणवत्ता समाप्त हो जाती है। अस्पताल में डीप फ्रीजर है, लेकिन उसे चौबीस घंटे चालू रखने के लिए बिजली नहीं होती। बिजली, भोजन व सफाई के लिए आउट सोर्सिग की शुरूआत की गयी, लेकिन राजनीति एवं पैरवी के दवाब में यह व्यवस्था कारगर साबित नहीं हो रही।

सबसे बड़ी बात यह कि यहां मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त संख्या में डाक्टर नहीं हैं। सदर अस्पताल व पीएचसी को छोड़ कर अन्य किसी अस्पताल में डाक्टर नहीं रहते या नहीं जाते। बीमारियों के प्रसार व पीड़ित मरीजों की इस कदर उपेक्षा खासी महंगी साबित हो सकती है।


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