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बांस की अंधाधुंध कटान, कीमत पहुंची आसमान

अररिया, जागरण संवाददाता: मैला आंचल की धरती पर बांस व उससे बने सामान यहां की आंचलिक विशेषता रहे हैं।

By Edited By: Published: Sun, 29 Mar 2015 09:19 PM (IST)Updated: Sun, 29 Mar 2015 09:19 PM (IST)
बांस की अंधाधुंध कटान, कीमत पहुंची आसमान

अररिया, जागरण संवाददाता: मैला आंचल की धरती पर बांस व उससे बने सामान यहां की आंचलिक विशेषता रहे हैं। रेणु की प्रसिद्ध कहानी ठेस का नायक सिरचन एक बांस कारीगर ही था। लेकिन इस विशेषता पर बाजार का प्रहार हो रहा है। पूरे प्रकरण में किसान लुट रहे हैं और बिचौलियों की जेब भर रही है।

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नगद आमदनी का जरिया है बांस

यहां के किसानों के लिए बांस नगद आमदनी का एक प्रमुख जरिया है। इन दिनों बांस व्यवसाय के बिचौलियों की सक्रियता किसानों की आय पर ग्रहण लगा रही है। इलाके में बांस की अंधाधुंध कटाई से इनकी कीमतें आसमान पर पहुंच गयी हैं। लेकिन विडंबना है कि इस बढ़त का फायदा किसानों को नहीं बल्कि बिचौलियों की पाकेट में पहुंच रहा है।

महानगर जा रहे हैं बांस

यहां से बांस व उससे बनी कमानियां महानगरों में भेजी जा रही हैं। फायदे की अधिक मारजीन देखकर कई लोग इस ध्ाधे में शामिल हो गये हें और जम कर किसानों की हकमारी कर रहे हैं।

जानकारों की मानें तो बांस के पैकार गांव गांव घूम कर बांस की खरीद करते हैं और उन्हें ट्रक में लाद कर मुंबई सहित देश के अन्य महानगरों में भेज देते हैं। वहीं, कई लोग पीस के भाव में बांस की खरीद करते हैं और फिर उसकी कमाची बना कर उसे किलो के भाव में बेचते हैं। बांस की कमाचियों को दिल्ली आदि मेट्रो में भेजा जाता है। विडंबना है कि इस धंधे में किसान कहीं नहीं, सारा फायदा बिचौलियों की जेब में जाता है।

बिचौलिए गांवों में सस्ते दर पर बांस खरीद लेते हैं तथा उसे बेपारियों के हाथ फायदा लेकर बेच देते हैं। ये व्यापारी उसे बाहर ले कर चले जाते हैं। जानकारों के अनुसार यहां से बीस तीस रुपये में खरीदा गये बांस की कमाची महानगरों में सौ रुपये प्रति किलो के भाव से बिकती है। जाहिर है कि लाभ उसे नहीं मिल रहा, जो इसके असल हकदार हैं।

इतना ही नहीं, इस इलाके में बांस आधारित कोई उद्योग भी अब तक नहीं लगा है। अस्सी के दशक में फारबिसगंज स्थित बियाडा की जमीन पर बांस व बेंत प्रशिक्षण केंद्र खुला, लेकिन प्रशासन व विभाग की उदासीनता के चलते बंद हो गया।


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