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विडंबना: बेटा भेल लोकी लेल, बेटी भेल फेंकी देल..

अररिया, जासं: जन्म के समय उठने वाली परिजनों की आह तमाम प्रयासों के बावजूद वाह में नहीं बदल सकी है। इ

By Edited By: Published: Fri, 27 Mar 2015 01:11 AM (IST)Updated: Fri, 27 Mar 2015 01:11 AM (IST)
विडंबना: बेटा भेल लोकी लेल, बेटी भेल फेंकी देल..

अररिया, जासं: जन्म के समय उठने वाली परिजनों की आह तमाम प्रयासों के बावजूद वाह में नहीं बदल सकी है। इस क्षेत्र में बेटी का जन्म आज भी दुख का बायस बनता है। यहां तक कि सुबह सुबह उठकर गाने वाले पंडुक की बोली में भी महिलाओं के कमतर होने का कोड छिपा है। .. बेटा भेला लोकी लेल, बेटी भेल फेंकी देल।

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दुखद है कि पंचायत चुनाव में आरक्षण उपलब्ध रहने के बावजूद अधिकतर महिलाएं घर की चौखट के अंदर ही सिमटी हैं और उनका कार्य उनके पति ही निबटाते हैं। अररिया की स्थानीय राजनीति में एमपी (मुखियापति), एसपी (सरपंच पति), पीपी (प्रमुखपति) शब्द खूब प्रचलित हैं। पंचायत स्तर पर आरक्षण लागू हुए एक दशक से अधिक बीत जाने के बावजूद महिलाएं अब भी हाशिए पर ही हैं। बीते दिनों संपन्न विधान परिषद चुनाव में पांच हजार से अधिक पुरुष मतदाताओं ने वोट डाले, लेकिन महिला मतदाताओं की संख्या केवल 573 रही।

अब तक संसद में नहीं पहुंची आधा आबादी

हालांकि विधान सभा में यहां की कई महिलाओं ने जिले का प्रतिनिधित्व किया है, लेकिन संसद में अब तक कोई महिला प्रतिनिधि नहीं पहुंच पायी है। लोकसभा चुनाव में किसी महिला का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दूसरे स्थान तक ही रहा है। सन 1998 के आम चुनाव में राजद की बीता सरदार दूसरे स्थान पर रही थी। इससे पचास के दशक में पलासी विधान सभा क्षेत्र से पीएसपी की शांति देवी और नब्बे के दशक में रानीगंज विस क्षेत्र से जद की शांति देवी पति नरेश पासवान ने विधायक का चुनाव जीता, मंत्री भी बनी, लेकिन कुल मिला कर विधान सभा व लोकसभा चुनाव में महिलाओं की नुमाइंदगी कम ही रही है।

इस संबंध में जानकारों का मानना है कि अररिया में पितृ सत्तात्मक समाज की प्रधानता के कारण लोग महिलाओं को बाहरी गतिविधियों के लिए अनुमति नहीं देते। यहां तक कि उन्हें पढ़ाई लिखाई से भी वंचित रखा जाता है। साक्षरता के आंकड़े प्रमाण हैं कि अररिया में तकरीबन 57 फीसदी महिलाओं को लिखना पढ़ना नहीं आता। इतना ही नहीं पंचायत चुनाव में आरक्षण पाकर मुखिया सरपंच आदि बनी दर्जनों महिलाओं को भी अक्षरज्ञान नहीं है। उनका सारा काम धंधा उनके पति या पुत्र निबटाते हैं।

विडंबना है कि समाज की राजनीतिक नुमाइंदगी करने वालों ने भी महिलाओं की हालत में सुधार की बाबत कम ही सोचा है। अन्यथा ऐसी सूरत नहीं होती। यहां का समाज कल्चरल तौर पर महिलाओं का हिमायती है। यहां की मुस्लिम कुल्हैया बिरादरी एवं राजवंशी बिरादरी में महिलाओं की खासी इज्जत है, लेकिन राजनीति की गलियों में किसी भी समुदाय की महिलाओं के दर्शन कम ही होते हैं।


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