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उजाले की चाह जिंदगी हो रही स्याह

अररिया, जागरण संवाददाता: आबादी हर साल बढ़ रही है। जाहिर है, पढ़ने वालों की संख्या में भी इजाफा हो रह

By Edited By: Published: Mon, 22 Dec 2014 07:35 PM (IST)Updated: Mon, 22 Dec 2014 07:35 PM (IST)
उजाले की चाह जिंदगी हो रही स्याह

अररिया, जागरण संवाददाता: आबादी हर साल बढ़ रही है। जाहिर है, पढ़ने वालों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। लेकिन आबादी के हिसाब से कालेजों की संख्या कम पड़ रही है। तकनीकी व वोकेशनल कोर्स वाले कालेजों की तो बात ही छोड़ दीजिए, पंद्रह लाख की आबादी के लिए मात्र एक सरकारी कालेज? यह उपेक्षा की हद है। मैला आंचल में शिक्षा का परिदृश्य किसी छलावे से कम नहीं। साधन विहीन परिवारों के लिए जिंदगी में आगे बढ़ने की चाहत पर उपेक्षा का ग्रहण लगा हुआ है। वहीं, तकनीकी व रोजगार परकशिक्षा तो अब भी दूर की कौड़ी ही है।

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आबादी व कालेजों की संख्या

जिले की आबादी- लगभग तीस लाख

अंगीभूत डिग्री कालेज-2

विवि से संबंधन प्राप्त डिग्री कालेज-5

मान्यता प्राप्त इंटर कालेज-12

संस्कृत कालेज- 2

मेडिकल कालेज- 0

इंजीनियरिंग कालेज-0

वोकेशनल कोर्सेस के कालेज- 0

कैरियर काउंसिलिंग का घोर अभाव

मैट्रिक प्रास करने के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करना हिमालय की चोटी पर चढ़ने जैसा है। कालेजों में सीट नियत हैं और हर शख्स पढ़ना चाहता है। ऐसे में कम नंबर वालों को बेहद मुश्किल होती है। अगर एडमीशन हो भी गया तो मेडिकल व इंजीनियरिंग में प्रवेश की भेड़ चाल। लिहाजा निजी कोचिंग संस्थानों की चांदी कटती है। हालात ये हैं कि कालेजों में एडमीशन के बाद लड़के अधिक समय कोचिंग संस्थानों में ही गुजारते हैं। उनका तर्क यह होता है कि कालेज में पढ़ाई नहीं होती। यह रोग हाई स्कूल से ही प्रारंभ है। हालांकि बड़ी संख्या में लड़के कालेज पहुंचते हैं और पढ़ाई भी होती है।

सरकारी कालेजों में हैं ढेर सारी रिक्तियां

तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि सरकारी कालेजों में बड़ी संख्या में पद रिक्त पड़े हैं। किसी प्राध्यापक के रिटायर होने के बाद नयी नियुक्ति नहीं होती। कालेजों में खली पड़े पदों का असर निश्चित रूप से शिक्षा व्यवस्था पर पड़ रहा है।

वहीं, एफिलिएटेड कालेजों में वेतन का संकट है। ऐसे उदाहरण कई हैं कि लोगों ने बिना वेतन के पूरी जिंदगी गुजार दी और रिटायर भी हो गये।

तकनीकी व मेडिकल कालेजों का अकाल

इस क्षेत्र में मेडिकल, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट व अन्य वोकेशनल शिक्षण संस्थानों के नाम पर बड़ा सा शून्य पसरा हुआ है।

कोट

शिक्षा का परिदृश्य सुधारने को सरकार व बिजनेस हाउसेज की तरफ से पहल होनी चाहिये। वे तकनीकी व वोकेशनल कालेज खोलने को आगे आयें, अन्यथा देर हो जायेगी।

-डा.सुबोध कुमार ठाकुर, अध्यक्ष, अररिया महाविद्यालय शिक्षक संघ


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