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पढ़ता है नमाज, हसरत है सरस समाज

संवाद सूत्र: जोकीहाट (अररिया): दुनिया का कोई भी मजहब किसी से बैर रखना नहीं सिखाता। कलाकार के लिए

By Edited By: Published: Fri, 31 Oct 2014 06:23 PM (IST)Updated: Fri, 31 Oct 2014 06:23 PM (IST)
पढ़ता है नमाज, हसरत है सरस समाज

संवाद सूत्र: जोकीहाट (अररिया):

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दुनिया का कोई भी मजहब किसी से बैर रखना नहीं सिखाता। कलाकार के लिए सभी धर्म व समाज एक समान होते हैं। मूर्ति बनाकर जीविका चलाना उनका पेशा है। लेकिन इस्लाम में उनकी पूरी निष्ठा है। इतना ही नहीं पांचों वक्त नमाज पढ़ना, रोजा रखना पूरी तरह अल्लाह की इबादत करना है लेकिन रोजी-रोटी और परिवार की देखभाल, बच्चों की पढ़ाई मूर्ति बनाकर मिले पैसों से ही चलता है।

वाकया है आंध्रप्रदेश राज्य के महबूबनगर जिले के गगलपल्ली गांव के सैयद गुमशिया का। गुमशिया आजकल जोकीहाट के गांवों में मूर्ति बनाकर खूब शोहरत और इज्जत कमा रहे हैं। बतौर गुमशिया गणेश, शंकर, कृष्णा, विष्णुजी, हनुमानजी आदि की उन्हें मूर्ति बनाने में महारथ हासिल है। ये मूर्तिकार पीतल, एलुमीनियम, लोहे को गलाकर मूर्तियां बनाते हैं। बदले में इन्हें मजदूरी मिलती है। गुमशिया बताते हैं कि इस कार्य में उनकी बीबी और एक बेटा भी मूर्ति निर्माण में उनका सहयोग कर रहा है। बीबी सकीना और बेटा उमर मूर्ति बनाने में उनका बखूबी साथ दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि मूर्ति बनाना मजहब के प्रतिकूल है लेकिन उन्होंने कहा कि मूर्ति बनाना मेरा काम है, इस्लाम मेरा धर्म। हज करना उनकी हसरत रही है पैसा कमा कर वे हज जरूर करेंगे। उन्होने कहा कि कलाकार की नजरों में सभी धर्म और मजहब एक समान है। उन्होने कहा कि बालीवुड के दर्जनों कलाकार सर्व धर्म के प्रति अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। तो इसमें बुरा क्या है? मूर्तिकार गुमशिया व उनके परिवार हमारे समाज के लोगों को एक नसीहत दे रहे हैं कि अल्लाह, ईश्वर, गॉड सब एक है हमें किसी से बैर नहीं। वे कहते हैं कि वे पिछले दो सालों से बंगाल, बिहार के ठाकुरगंज, बहादुरगंज, चरघरिया, जहानपुर, जोकीहाट, किशनगंज आदि ठिकानों में गांव गांव जाकर मूर्ति बनाते हैं। आज उनके द्वारा बनाये हजारों मूर्तियां देवालयों की शान बढ़ा रहे हैं। बुद्धिजीवियों का कहना है कि गुमशिया एक मजदूर तबके के लोग हैं लेकिन इनसे हमें बहुत कुछ सीखने की जरूरत हैं। आज गुमशिया जैसे मूर्तिकार की सोच को अमल में लाने की जरूरत है ताकि स्वस्थ और संगठित समाज का नया रूप देखने को मिलता रहे।


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