हर महिला को यह हक है कि वह पहले अपने लिए जिए
अगर कोई महिला मां बनने से घबराती हैं, उसे लगता है कि इसके बाद वह अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाएगी, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है।
नई दिल्ली। मां बनना इस संसार का सबसे सुखद अहसास है। मां और बच्चे के बीच का प्रेम अनमोल होता है। हर मां अपने बच्चे को दुनिया की सारी खुशियां देना चाहती है। इसके लिए वह किसी भी हद तक गुजरने के लिए तैयार रहती है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि एक महिला मां बनने या फिर अपने बच्चे की खुशियों के लिए अपने सपनों को पीछे छोड़ दे? बिल्कुल नहीं, असल में मातृत्व कोई त्याग नहीं है। लेकिन लोगों को लगता है कि मां मतलब त्याग की देवी। लोग इस बात को समझ नहीं पाते कि मां बनने के बाद भी महिलाएं अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं और कर भी रही हैं। इस बात को बहुत इमोशनल तरीके से टाइटन रागा घड़ी के नए विज्ञापन में कहा गया है।
हर महिला को यह हक है कि वह पहले अपने लिए जिए, अपने सपनों को पूरा करे, फिर किसी और चीज के बारे में सोचे। महिलाएं आज देश की आर्थिक प्रगति में भी अहम भूमिका निभा रही हैं। आईटी सेक्टर हो या एयरफोर्स हर फील्ड में महिलाएं, पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। समय बदल रहा है। ऐसे में महिलाएं मां बनने का फैसला भी अपने हिसाब से ले रही हैं। वह पहले अपने सपनों को समय देती हैं, इच्छाओं को पूरा करती हैं, फिर मातृत्व का सुख उठाने के बारे में सोचती हैं। वहीं कुछ महिलाएं मां बनने के बाद भी अपने सपनों का पीछा करना नहीं छोड़ती हैं। आपने कई महिलाओं को देखा होगा, जो बच्चों की परवरिश करने के साथ-साथ ही अपने ऑफिस का काम भी बेहतर तरीके से मैनेज करती हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है।
दरअसल, समय बदल रहा है। महिलाएं आज समाज में खुलकर सांस ले रही हैं, उन्हें अपने मुताबिक जीने और काम चुनने की आजादी है। कोई उन्हेंं बाध्य नहीं कर सकता है। शहरों से शुरू हुआ ये बदलाव अब देश के गांवों में भी दस्तक दे रहा है। गांव की अनपढ़ महिलाएं भी अपने अधिकारों को जानकर समाज में सिर उठा कर जीने की ओर कदम बढ़ा रही हैं। वे भी आत्मसम्मान के साथ जीना चाहती हैं, यह समय की मांग भी है।
महिलाएं आज अपने सपनों को जी रही हैं। जीवन के दौरान आने वाली तमाम बाधाओं से निपटते हुए वो आगे बढ़ रही हैं। हालांकि महिलाओं का समय हमेशा से ऐसा नहीं रहा है। पहले महिलाओं को घरों तक ही सीमित रहने के लिए मजबूर किया जाता था। ज्यादा पढ़ने भी नहीं दिया जाता था। कुछ महिलाएं तमाम विरोधों के बावजूद घर से बाहर अपने आत्मसम्मान के लिए नौकरी करने निकलती भी थीं, तो उन्हें शादी या फिर मां बनने के बाद नौकरी छोड़नी पड़ती थी, लेकिन अब समय बदल रहा है।
इसलिए अगर कोई महिला मां बनने से घबराती हैं, उसे लगता है कि इसके बाद वह अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाएगी, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। कुछ भी सीखने और सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती। अगर मन में सपने पूरे करने की ललक है, तो उम्र के पड़ाव इसके आड़े नहीं आते।