अग्निपरीक्षा में पास हुए तो सोना बनकर निखरेंगे अमित शाह
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव सिर्फ सत्ता और विपक्ष ही नहीं तय करेगा बल्कि बदलते परिप्रेक्ष्य में चुनावी रणनीति को भी नए सिरे से परिभाषित कर सकता है। दरअसल, दोनों राज्यों के इतिहास में शायद यह पहला मौका है जब चतुष्कोणीय व पंचकोणीय मुकाबले में भी अकेले दम बहुमत की बात हो रही है और वह भी उस दल क
नई दिल्ली। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव सिर्फ सत्ता और विपक्ष ही नहीं तय करेगा बल्कि बदलते परिप्रेक्ष्य में चुनावी रणनीति को भी नए सिरे से परिभाषित कर सकता है। दरअसल, दोनों राज्यों के इतिहास में शायद यह पहला मौका है जब चतुष्कोणीय व पंचकोणीय मुकाबले में भी अकेले दम बहुमत की बात हो रही है और वह भी उस दल के लिए जिसने छोटी पार्टी बनकर रहना अपनी नियति मान ली थी। दलों के साथ ये चुनाव हर दल के मुखिया के लिए भी अग्निपरीक्षा साबित होंगे। पास हुए तो सोना बनकर निखरेंगे।
लोकसभा चुनाव में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश ने इतिहास रच दिया था। भाजपा की उस जीत के लिए श्रेय सेनापति व तत्कालीन महासचिव अमित शाह को दिया गया था। अब बतौर अध्यक्ष लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र और हरियाणा में भी उनके प्रबंधन की परख होने वाली है।
दरअसल, यह निर्णय लेना ही सबसे जटिल था कि दोनों राज्यों में पार्टी अपने पैरों पर खड़ी होगी और दूसरों से आगे चलेगी। यह निर्णय लेकर उन्होंने साबित कर दिया कि राष्ट्रीय राजनीति में आने के डेढ़-दो वर्षो में ही वह पार्टी को केंद्र में ही नहीं राज्यों में भी विकल्प के तौर पर सबसे आगे खड़ी करना चाहते हैं।
चुनावी प्रबंधन के माहिर माने जाने वाले शाह ने इन दोनों राज्यों में जमीनी स्तर पर माइक्त्रो मैनेजमेंट को ही ध्यान में रखा। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और दूसरे बड़े नेताओं ने दस दिन में लगभग पांच दर्जन चुनावी सभाएं कीं तो दूसरी ओर शाह ने हर विधानसभा क्षेत्र में सेनापति नियुक्त कर जमीनी स्तर पर दुरुस्त कार्ययोजना सुनिश्चित करने की कोशिश की। बताते हैं कि शाह ने महाराष्ट्र और हरियाणा में क्लस्टर के आधार पर लगभग ढाई सौ मंत्रियों, विधायकों और नेताओं को उतार दिया था। उत्तर प्रदेश की बड़ी जीत में भी उन्होंने निचले स्तर पर ही ढीले पड़े पेंच कसने में ज्यादा वक्त लगाया था।
रविवार को आने वाले नतीजे बताएंगे कि शाह की रणनीति कितनी असरदार रही। अगर पार्टी दोनों राज्यों में बहुमत पाती है तो मोदी के बरकरार करिश्मे और शाह के फैसले का असर आने वाले चुनावों पर भी दिखेगा। अगले साल जम्मू-कश्मीर और झारखंड के साथ अक्टूबर, 2015 तक बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य में भी चुनाव होने हैं। दिल्ली भी इससे बेअसर नहीं होगी। यह चुनाव भाजपा के दूसरे छोटे साथियों की हदें भी तय कर देगा और दक्षिण के उन राज्यों में पैर फैलाने की इजाजत भी देगा जहां क्षेत्रीय क्षत्रप कमजोर होने लगे हैं।
अपने गुरु व पीएम मोदी की भरपूर मदद से शाह ने फिलहाल यह सुनिश्चित कर लिया कि दोनों राज्यों में भाजपा से ही अन्य दलों का मुकाबला हो। बहुमत मिला तो मोदी-शाह की पुरानी जोड़ी अजेय मानी जाएगी। सीटों को लेकर जिद पर अड़ जाने वाले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे समेत शरद पवार और कांग्रेस नेतृत्व के लिए भी चुनाव नतीजा सीख होगा।
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