नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।  कई दशकों से भारत बाढ़ की विभीषिका से पीड़ित है। प्राकृतिक आपदाओं, विशेषकर बाढ़ के कारण भारत मृत्यु दर के मामले में दुनिया में सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। आंकड़ों की मानें तो भारत में बाढ़ का प्रभाव दिन-ब-दिन गंभीर होता जा रहा है। 1975 और 2015 के बीच 113,390 लोगों की इस वजह से मौत हो चुकी है। बाढ़ के कारण औसतन प्रति वर्ष 2765 मौतें होती है। बाढ़ जनहानि के साथ आर्थिक तंत्र को भी खासा नुकसान पहुंचाती है। बाढ़ के कारण बुनियादी ढांचा भी पूरी तरह से खस्ताहाल हो जाता है। सड़क, फसलें, भवन इत्यादि, को इससे काफी क्षति पहुंचती है। हाल में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि देश में बाढ़ के प्रति 30 सबसे ज्यादा संवेदनशील जिलों में से 17 गंगा बेसिन में स्थित हैं। वहीं इनमें से तीन जिले ब्रह्मपुत्र बेसिन में हैं। वहीं इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी), दिल्ली, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, पुणे और आईआईटी, रुड़की के शोधकर्ताओं ने एक नया जिला-स्तरीय बाढ़ गंभीरता सूचकांक (डीएफएसआई) विकसित किया है।

यह सूचकांक देश में प्रभावितों की संख्या, बाढ़ के विस्तार और उसकी अवधि के आधार पर बाढ़ की ऐतिहासिक गंभीरता को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसमें 1967 से 2023 के बीच आई बाढ़ की घटनाओं को आधार बनाया गया है। इसके बारे में विस्तृत अध्ययन हाल ही में प्रकाशित हुआ है।

तिरुवनंतपुरम में औसतन चार घटनाएं

तिरुवनंतपुरम में बाढ़ की 231 घटनाएं हुई है यानी औसतन प्रतिवर्ष 4 से अधिक घटनाएं हुई हैं। इसके अलावा, 5 जिलों में बाढ़ की 178 से अधिक घटनाएं हुईं है यानी प्रति वर्ष औसतन 3 से अधिक घटनाएं। ये हैं तिरुवनंतपुरम, लखीमपुर,धेमाजी, कामरूप और नागांव। साथ ही, 28 जिलों में 113 से अधिक या उससे अधिक बाढ़ की घटनाएं हुईं यानी प्रति वर्ष 2 से अधिक घटनाएं। ये हैं तिरुवनंतपुरम, लखीमपुर, धेमाजी, कामरूप, नागांव,

मुंबई, बारपेटा, सोनितपुर, नागपुर, दर्रांग, डिब्रूगढ़, कछार, वायनाड, गोलपारा, बक्सा,पुणे, जोरहाट, मोरीगांव, नलबाड़ी, गोलाघाट, शिवसागर, धुबरी, वारंगल ग्रामीण, हमीरपुर, इडुक्की, अलाप्पुझा, कोझिकोड और शिमला। हर साल, औसतन, असम राज्य में कम से कम 14 बाढ़ की घटनाओं का सामना करना पड़ता था।

गंगा बेसिन में बाढ़ का खतरा

शोधकर्ताओं का कहना है कि कि देश के सभी नदी घाटियों में से गंगा बेसिन में बसी जनसंख्या सबसे अधिक है। ऐसे में वहां बड़ी आबादी पर भीषण बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। आंकड़ों की मानें तो देश में बाढ़ के प्रति 30 सबसे ज्यादा संवेदनशील जिलों में से 17 गंगा बेसिन में स्थित हैं। वहीं इनमें से तीन जिले ब्रह्मपुत्र बेसिन में हैं। चमोली जिला उत्तराखंड का एक पहाड़ी जिला है। आंकड़े बताते हैं कि यहां बार-बार बाढ़ का सामना नहीं करना पड़ता लेकिन कुछ अत्यधिक हानिकारक बाढ़ की घटनाओं के कारण यह इस सूची में दिखाई देता है। 30 जिलों की सूची में से 17 गंगा बेसिन में और 3 ब्रह्मपुत्र बेसिन में हैं।

इसके अतिरिक्त,ब्रह्मपुत्र एक सीमा पार बेसिन है जो चार देशों और व्यापक बाढ़ को प्रभावित करता है। उच्च जनसंख्या दबाव के कारण, कुछ लोग नदी के बहुत करीब रहते हैं जो नदी भी उपलब्ध कराती है। उन्हें उनकी आजीविका की वजह से भी नदी के किनारे रहना पड़ता है। ये लोग अक्सर इस दौरान भी सुरक्षित स्थानों पर जाने से कतराते हैं। वहां पर बाढ़ आ जाती है और अत्यधिक असुरक्षित हो जाते हैं।

जलवायु परिवर्तन भी मौसमी आपदाओं का बड़ा कारण

आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग के मानवेंद्र सहारिया कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से चरम मौसमी आपदाओं का कहर बढ़ रहा है। भारत में भी बदलती जलवायु और बढ़ता तापमान बाढ़ पर असर डाल रहे हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसकी वजह से न केवल बाढ़ आने का जोखिम बढ़ रहा है, साथ ही स्थानीय तौर पर आकस्मिक रूप से आने वाली बाढ़ की संभावना भी मजबूत हो रही है।

हालांकि जिस तरह से इनके प्रबंधन को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं, उससे देश में इनके कारण होने वाली मौतों में गिरावट जरूर आई है। वैज्ञानिकों का भी कहना है कि जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उससे भविष्य में बारिश के पैटर्न में भारी बदलाव हो सकते हैं। नतीजन स्थानीय तौर पर भारी बारिश और बाढ़ की घटनाओं की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। बाढ़ से निपटने और उससे बचाव पर ध्यान देना जरूरी है साथ ही जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उत्सर्जन की रोकथाम भी महत्वपूर्ण है।

113,390 लोगों की चली गई जान

आंकड़ों के मुतबिक 1975 से 2015 के बीच आई बाढ़ ने अब तक 113,390 जिंदगियों को निगल लिया है। मतलब की इस दौरान हर साल औसतन 2,765 लोगों ने बाढ़ की वजह से अपनी जान गंवाई है। सहारिया कहते हैं कि बेहतर बाढ़ प्रबंधन के लिए प्रबंधन रणनीतियां और सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना एक आवश्यक आवश्यकता है। उन स्थानों को जानना है जो बाढ़ से होने वाली क्षति के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं। भारत में, बाढ़ कई अलग-अलग कारणों से उत्पन्न होती है: जलीय, नदी संबंधी, बर्फ का पिघलना, चक्रवात, और जल निकासी की भीड़। पहाड़ी क्षेत्रों में जहां मिट्टी ढीली और खुली होती है, पानी मिट्टी को भी नष्ट कर देता है और बाढ़ की लहरें पर्याप्त मात्रा में तलछट ले जा सकती हैं। जलनिकास भारत के कुछ हिस्सों, जैसे बिहार के मैदानी इलाकों और में बाढ़ के पीछे भीड़भाड़ एक और कारण है। यह तब होता है जब किसी क्षेत्र की नदियां आने वाले सभी प्रवाह को निकालने में असमर्थ होती हैं।

सीएसई की रिपोर्ट ने दी है चेतावनी

भारत ने साल 2023 के नौ महीनों में लगभग हर दिन भीषण मौसमी आपदा देखी है। लू, शीत लहर, चक्रवातों और बिजली गिरने से लेकर भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन तक की घटनाओं से भारतीयों को रोज जूझना पड़ा है। 1 जनवरी से 30 सितंबर 2023 के बीच 86 प्रतिशत दिनों में ऐसी घटनाओं ने देश में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को दर्शाया है। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट बताती है कि इन आपदाओं की वजह से 2,923 लोगों की मौत हो गई। 1.84 मिलियन हेक्टेयर (एमएचए) फसल क्षेत्र प्रभावित हो गई और 80,000 से अधिक घर नष्ट हो गए। यहीं नहीं इस कारण से 92,000 से अधिक पशुधन को भी काल के गाल में समा गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि चिंताजनक बात यह है कि ये गणनाएं कम करके आंकी जा सकती हैं क्योंकि प्रत्येक घटना के लिए डेटा एकत्र नहीं किया जाता है और न ही सार्वजनिक संपत्ति या कृषि के नुकसान की गणना की जाती है। इस रिपोर्ट को कॉप-28 की पृष्ठभूमि में पेश किया गया है।

आपदा की दृष्टि से, बिजली और तूफान सबसे अधिक बार आए। 273 में से 176 दिनों में इस कारण से 711 लोगों की जान गई। इनमें से सबसे ज्यादा मौतें बिहार में हुईं लेकिन सबसे ज्यादा कहर भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने बरपाया, जिसके कारण 1,900 से अधिक लोगों की जान चली गई।

सीएसई की महानिदेशक सुनीत नारायणन कहती है कि देश ने 2023 में अब तक जो देखा है वह गर्म होती दुनिया में नया 'असामान्य' है। हम यहां जो देख रहे हैं वह जलवायु परिवर्तन का वॉटरमार्क है। ऐसी घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। एक चरम घटना जिसे हम हर 100 साल में एक बार देखते थे, अब हर पांच साल या उससे भी कम समय में घटित होने लगी है। यह हमारे सबसे गरीबों की कमर तोड़ रहा है, जो सबसे अधिक प्रभावित हैं।

बाढ़ की राजधानी बनने की आशंका

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार, दुनिया भर में 90% से अधिक आपदाओं और 43% बाढ़ का कारण हाइड्रोक्लाइमेटिक का चरम पर पहुंचना है। बीएचयू के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि निकट भविष्य में गंगा बेसिन के निचले इलाकों में खेती पर सूखे की मार पड़ सकती है। रिपोर्ट में सामने आया कि क्षेत्रीय औसत वर्षा धीरे-धीरे बढ़ रही है। 21वीं सदी में अत्यधिक वर्षा के बढ़ने और तेज होने का अनुमान है, 2040 के दशक के बाद इसमें और अधिक वृद्धि होगी। अत्यधिक वर्षा की तीव्रता के कारण, पश्चिमी घाट, सिंधु, पश्चिम और मध्य भारतीय रिवर बेसिन अत्यधिक असुरक्षित होंगे। इसके अलावा, पश्चिम की ओर बहने वाली नदी घाटियों में स्थित मुंबई और पुणे जैसे प्रमुख शहरों में भविष्य में बढ़ती वर्षा की चरम सीमा के कारण शहरों में बाढ़ की संभावना बढ़ जाएगी। पिछले 100 साल में देश के तापमान में .6 डिग्री की वृद्धि हुई है जिससे ये प्राकृतिक आपदाएं बढ़ गई हैं। रिपोर्ट कहती है कि इससे आने वाले समय में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बाढ़ की घटनाएं भारत में दर्ज की जा सकती हैं। भारत फ्लड कैपिटल बन सकता है। वहीं देश में मानसून के दिनों की संख्या में गिरावट आ रही है, लेकिन एक दिन में बारिश का औसत बढ़ रहा है। इसका नतीजा है कि बाढ़ में इजाफा होगा।

काउंसिल ऑन एनर्जी, एंवायरमेंट एंड वॉटर (CEEW) की ओर से नई रिपोर्ट जारी की गई है जिसका शीषर्क चरम जलवायु घटना के लिए भारत की तैयारी: हॉटस्पॉट्स मानचित्रण और प्रतिक्रिया तंत्र। रिपोर्ट कहती है कि पिछले 50 साल में देश में बाढ़ आने की घटनाएं आठ गुना तक बढ़ी हैं । इससे भू-स्खलन, भारी बारिश, तूफान और बादल फटने की घटनाओं में भी 20 गुने का इजाफा हुआ है। रिपोर्ट बताता है कि 1970 से 2004 तक देश में हर साल औसतन तीन एक्सट्रीम फ्लड इवेंट होते थे जो अब हर साल 11 होने लगे हैं। 2005 तक हर साल 19 जिलों में बाढ़ आती थी लेकिन अब 55 जिलों में हर साल बाढ़ आती है। देश में कुल 728 जिले हैं। पिछले साल देश में 16 बार बाढ़ जैसे हालात बने जिनसे 151 जिले प्रभावित हुए। इससे इन जिलों में रहने वाले 9.7 करोड़ लोगों की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हुई। पिछले एक दशक में असम के 6 जिले बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। इन जिलों के नाम हैं बारपेटा, दारंग, धेमाजी, गोलपारा, गोलाघाट और शिवसागर।

रिवर बेसिन

नदी के किनारे वाले क्षेत्र को रिवर बेसिन कहते हैं. जहां से नदियां गुजरती हैं, आसपास की जमीनें नदियों से पानी खींचती हैं। जिससे मिट्टी में नमी की मात्रा हमेशा बनी रहती है। यही कारण है कि यहां की भूमि कृषि के लिये अत्यधिक उपजाऊ है साथ ही, जब ऐसी जगहों पर बाढ़ आती है तो पानी अपने साथ मिट्टी और अन्य खनिज पदार्थ लेकर आता है और मैदानी इलाकों में इकट्ठा हो जाता है।