राजीव सचान। कांग्रेस के इस आरोप में दम है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न्याय पत्र नाम वाले उसके घोषणा पत्र की मनचाही व्याख्या कर रहे हैं और उसमें तो वैसा कुछ लिखा ही नहीं, जिसका वह उल्लेख कर रहे हैं। बीते कुछ दिनों से मोदी यह कहकर कांग्रेस को घेर रहे हैं कि वह लोगों की जमीन-जायदाद और यहां तक कि महिलाओं का सोना-चांदी और उनके मंगलसूत्र के बारे में जानकारी जुटाकर उन्हें अपने पसंदीदा वोट बैंक को बांटने का इरादा रखती है। मोदी यह भी कह रहे हैं कि कांग्रेस एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण में कटौती कर मुस्लिम समुदाय को देना चाहती है।

उन्हें यह कहने का मौका इसलिए मिल गया, क्योंकि कर्नाटक सरकार ने राज्य के समस्त मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा मानकर ओबीसी आरक्षण में शामिल कर दिया। इस पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने आपत्ति भी जताई है। भाजपा को संपत्ति के पुनर्वितरण करने का आरोप लगाकर कांग्रेस को घेरने का मौका उसके घोषणा पत्र के इस बिंदु से मिला कि वह संपत्ति का सर्वे कराएगी। रही-सही कसर सैम पित्रोदा ने यह कहकर पूरी कर दी कि भारत को अमेरिका जैसे विरासत टैक्स पर बहस करनी चाहिए।

कांग्रेस सफाई देते-देते परेशान है, लेकिन मोदी और उनके सहयोगी अपने आरोप बार-बार दोहरा रहे हैं। कांग्रेस का इससे परेशान होना स्वाभाविक है, लेकिन बहुत समय नहीं हुआ, जब कांग्रेस के साथ विपक्षी दलों के अन्य अनेक नेता देश को यह समझाने में लगे हुए थे कि यदि नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए लागू हुआ तो देश के मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी। इसका दुष्प्रचार इतना अधिक किया गया कि दिल्ली के साथ देश के अनेक हिस्सों में लोग सड़कों पर उतरे, बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और उसमें करोड़ों की सरकारी और गैर-सरकारी संपत्ति स्वाहा हो गई।

कुछ लोगों की जान भी गई। दिल्ली में 50 से अधिक लोगों की जान लेने वाले दंगे सीएए विरोधी शाहीन बाग धरने के लंबा खिंचने का ही नतीजा थे। याद करें कि इस धरने को संबोधित करने कौन-कौन विपक्षी नेता जाते थे और वहां क्या-क्या कहते थे? शाहीन बाग धरने के चलते दिल्ली को नोएडा से जोड़ने वाली एक व्यस्त सड़क जबरन अवरुद्ध कर दी गई थी, लेकिन किसी को दिल्ली-एनसीआर के आम लोगों को हो रही परेशानी की परवाह नहीं थी। दुर्भाग्य से इस धरने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ नहीं किया। यदि कोविड महामारी नहीं आई होती तो शायद दंगों के बाद भी यह धरना जारी रहता।

कुछ दिनों पहले सीएए के नियम अधिसूचित कर दिए गए, लेकिन शायद ही कोई उनके विरोध में उतरा हो, क्योंकि सभी को यह समझ आ गया था कि चार वर्ष पहले उन्हें बरगलाया गया था। तब विपक्षी नेताओं को सीएए की मनमानी व्याख्या करने का मौका इसलिए मिल गया था, क्योंकि उसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए मुसलमानों को इन देशों का बहुसंख्यक होने के नाते नागरिकता देने का प्रविधान नहीं था।

विपक्षी नेताओं को सीएए के जरिये भारत के मुसलमानों की नागरिकता छीने जाने का सनसनीखेज आरोप लगाने का अवसर भी इसलिए मिल गया था, क्योंकि इस कानून के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी लाने की चर्चा हो रही थी। हालांकि एनआरसी के मसौदे का अता-पता नहीं था, लेकिन विपक्षी नेताओं ने यही बताया कि देश के मुसलमानों को पहले एनआरसी से बाहर किया जाएगा, फिर सीएए के प्रविधान के तहत उनकी नागरिकता छीन ली जाएगी। लोगों को भड़काने और सड़कों पर उतारने के लिए यह पर्याप्त था।

भाजपा की ओर से अपने घोषणा पत्र की मनमानी व्याख्या से कांग्रेस का परेशान होना स्वाभाविक है, पर जब कांग्रेस के साथ अन्य विपक्षी दलों के नेता कृषि कानूनों की मनचाही व्याख्या कर रहे थे तो भाजपा के साथ दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा एवं पंजाब के लोग भी बहुत परेशान हुए थे। तब इन कानूनों के विरोध में विपक्षी दलों के सहयोग-समर्थन से उत्साहित किसान संगठन राजमार्गों को घेरकर बैठ गए थे। वे करीब एक वर्ष तक दिल्ली को घेरकर बैठे रहे। इससे करोड़ों लोग परेशान हुए और अरबों रुपये का नुकसान हुआ।

तब कांग्रेस समेत विपक्ष को आनंद आ रहा था, क्योंकि सरकार किसान नेताओं के निशाने पर थी और वह उन्हें संतुष्ट नहीं कर पा रही थी। इसलिए नहीं कर पा रही थी, क्योंकि किसान संगठनों के साथ विपक्षी दल यही बताने में लगे थे कि कृषि कानूनों का मूल उद्देश्य किसानों की जमीन छीनना है। कृषि कानूनों की ऐसी व्याख्या का कोई आधार न था, लेकिन विपक्ष ने यह तय कर लिया था कि उसे किसानों को यही समझाना है कि इन कानूनों से उनके खेत खतरे में हैं।

तब विपक्षी दलों के साथ कथित किसान संगठनों के नेता भी अपना राजनीतिक हित देख रहे थे। एक ऐसा ही संगठन पंजाब के विधानसभा चुनावों में उतरा और उस समय किसान नेता बने योगेंद्र यादव का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद कहना था कि हमने तो विपक्षी दलों के लिए पिच तैयार की थी, लेकिन यदि वे उसका फायदा नहीं उठा सके तो हमारा क्या दोष?

यदि कोई इस नतीजे पर पहुंच रहा है कि भाजपा कांग्रेस के घोषणा पत्र की मनचाही व्याख्या कर रही है तो वह गलत नहीं, लेकिन उसे इस नतीजे पर भी पहुंचना होगा कि तीन-चार वर्ष पहले कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल सीएए और कृषि कानूनों की मनमानी व्याख्या कर रहे थे। चूंकि राजनीतिक दलों ने एक-दूसरे की नीतियों को लेकर उन पर मनचाहे आरोपों की बौछार करने की सुविधा हासिल कर रखी है, इसलिए चुनावों के दौरान आदर्श चुनाव संहिता प्रभावी नहीं दिखती। आदर्श चुनाव संहिता तब प्रभावी होगी, जब कोई आदर्श राजनीतिक संहिता भी होगी।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)